वैभव लक्ष्मी व्रत कथा pdf 2024 Vaibhav Laxmi Vrat Katha

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Vaibhav Laxmi Vrat Katha :- हिन्दू धर्म में सप्ताह का हर दिन किसी न किसी देवता को समर्पित किया गया है। केवल शुक्रवार का दिन ही ऐसा दिन है जो की किसी देवता को नहीं बल्कि दो देवियों को समर्पित किया गया है। शुक्रवार का दिन माता दुर्गा, माता संतोषी और माता लक्ष्मी को समर्पित माना गया है। लक्ष्मी माता को धन-वैभव की देवी माना गया है। माना जाता है की शुक्रवार को माता लक्ष्मी के व्रत पूर्ण विधि विधान से रखने से घर में धन संपदा और वैभव आता है। तो आइए पढ़ते हैं वैभव लक्ष्मी व्रत की कहानी

Vaibhav Laxmi Vrat Katha (वैभव लक्ष्मी व्रत की कहानी)

वैभव लक्ष्मी व्रत कथा एक छोटे से नगर से शुरू होती है। प्राचीन काल में एक छोटा सा नगर था। उस नगर में शीला नाम की एक महिला अपने पति के साथ निवास करती थी। शीला बहुत ही धार्मिक और सात्विक स्वभाव की थी। शीला का दाम्पत्य जीवन बहुत ही खुशहाल और सरल था। शीला का पति मेहनत करके धन कमाता और शीला घर का काम काज करती।

शीला का गृहस्थ जीवन पड़ोसियों के लिए मिसाल था। सब शीला और उसके पति की खूब तारीफ करते थे और उनसे सात्विक दाम्पत्य जीवन जीने के प्रेरणा लेते थे। शायद भाग्य को कुछ और ही मंजूर था, शीला का यह सुख ज्यादा समय तक नहीं चल पाया। शीला के पति का काम काज कम होने लगा। घर धन धान्य का अभाव होने लगा। शीला का पति घर में दो वक्त का खाना भी नहीं जुटा पता था। जल्दी धन कमाने के लालच में वह बूरी आदतों में फँसता चला गया। जुआ खेलने लगा मदिरा पान आदि तामसिक कार्य करके उसने सात्विक मार्ग त्याग दिया। अब तो वह शीला के साथ मार पीट भी करने लगा था।

Vaibhav Laxmi Vrat i kahani
Vaibhav Laxmi Vrat ki kahani

शीला ने अपने पति को बहुत समझाया लेकिन वह अधर्म के मार्ग पर आगे बढ़ता ही गया। शीला की खुशहाल गृहस्ती अब बदहाल हो गई। अब तो जो पड़ोसी उन्हे आदर्श मानते थे वही उनसे उनसे जी चुराने लगे और उनके घर आना जाना बंद कर दिया।

इन सब विपदाओं ने जहां उसके पति को अधर्म के रास्ते पर चलाया वहीं शीला अब ज्यादातर समय भगवान की भक्ति में बिताने लगी। शीला का मानना था की भगवान की चरणों में ही उसकी सब मुश्किलों का हल है। शीला रोज माता लक्ष्मी में मंदिर जाती और माता के चरणों में समय व्यतीत करती। शीला जब लक्ष्मी माता के मंदिर में होती तो अपनी सब दुख और विपदाओं को भूल जाती।

लेकिन धीरे धीरे शीला का धैर्य भी जवाब देने लगा। अपने दुखों के पहाड़ तले शीला इतनी दब गई की उसने माता लक्ष्मी के मंदिर जाना कम कर दिया। उसके जीवन की विपतियाँ उसके सात्विक जीवन में बाधा बनने लगी। अंततः उसने मंदिर जाना बिल्कुल ही बंद कर दिया और घर की चार दीवारी में घुट घुट कर रहने लगे।

एक सुबह शीला के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी। शीला ने जैसे ही दरवाजा खोला सामने एक बूढ़ी औरत खड़ी थी। मुख पे तेज ऐसा की स्वर्ग की अप्सरा भी फीकी पड़ जाए। मुस्कान ऐसी की जैसे खुद माता लक्ष्मी मुस्कुरा रही हों। जैसे ही वह बूढ़ी औरत बोली शीला को लगा जैसे पुष्पवर्षा हो रही हो। शीला उस बूढ़ी औरत को देखकर इतनी मंत्रमुग्ध हो गई की अपने सारे दुख दर्द भूल गई हो।

तभी वह बूढ़ी औरत बोली ” बेटी ! पहचाना नहीं ? “। शीला कुछ बोल पाती इससे पहले ही वह वृद्धा फिर बोली ” बेटी तुम माता लक्ष्मी के जिस मंदिर में जाती हो मैं भी उसी मंदिर में माता के दर्शन करने आती हूँ। “

शीला ने बूढ़ी औरत को अंदर बुलाया और एक फटी पुरानी जीर्ण शीर्ण अवस्था की एक दरी बैठने के लिए दी और खुद नीचे बैठ गई। शीला को अपनी दरिद्रता पे बहुत संकोच हो रहा था की वह घर आए मेहमान को बैठने के लिए आसन्न भी नहीं दे पा रही थी। तब वह बूढ़ी औरत फिर बोली ” बेटी बहुत दिनों से तुम मंदिर में माता के दर्शन करने नहीं आई तो मुझे चिंता हो रही थी । घर गृहस्ती में सब ठीक तो है ?”

बूढ़ी औरत के करुणा भरे शब्दों को सुनकर शीला का गला भर आया। शीला का हृदय पिघल गया और वह जोर जोर से रोने लगी । बूढ़ी औरत ने उसे सांत्वना दी और माता की तरह प्रेम दिया। शीला ने उसे सारी बात बताई की कैसे उसकी सुखी गृहस्ती बर्बाद हो गई। बूढ़ी औरत को अपना दुख दर्द बताकर शीला को बहुत राहत महसूस हुई ऐसा लगा की उसकी आधी विपतियाँ तो उस बूढ़ी औरत से बात करके ही कम हो गई हों।

शीला की सारी बात बहुत धैर्य पूर्वक सुनने के बाद वह वृद्ध महिला बोली ” बेटी ऐसा लगता है लक्ष्मी माता ने तुम्हारी बहुत बड़ी परीक्षा ली है। माता उन्ही की परीक्षा लेती है जो उसे सबसे ज्यादा प्रिय लगता है। तुमने इतनी विपदा झेलने के बाद भी अपना सात्विक जीवन नहीं छोड़ा माता इस बात से जरूर प्रसन्न हुई होंगी। रात्रि जितनी भी काली हो सवेरा उतना ही तेजस्वी होता है और घना अंधेरा चीरकर प्रकाश आता है।”

बूढ़ी औरत की बात सुनकर शीला को बहुत अच्छा लगा। उसके हृदय से दुख और निराश हटने लगी। अपने आँसू पोंछकर शीला बोली ” हे माता ! आप धन्य हो जो मुझे ज्ञान का मार्ग दिखाया। अब लक्ष्मी माता में मेरा विश्वास और भी अडिग हो गया है। हे माते आप बताए मैं क्या करू की लक्ष्मी माता की इस कठिन परीक्षा को झेल सकूँ और उन्हे प्रसन्न कर सकूँ।”

शीला की बात सुनकर वृद्धा मुस्कुराई और बोली ” बेटी तुम हर शुक्रवार लक्ष्मी माता का वैभव लक्ष्मी का व्रत करों और vaibhav laxmi vrat katha सुनों । अपने सामर्थ्य के अनुसार 11 या 21 शुक्रवार तक माता के नाम का उपवास रखों और फिर व्रत का उधयापन करों । माता जरूर तुम्हारी सुनेगी और तुम्हारे जीवन में पुनः खुशियां आएंगी। अब आँख बंद करके लक्ष्मी माता को याद करों और व्रत का संकल्प लो “

शीला ने आँखें बंद करके हाथ जोड़कर माता लक्ष्मी को प्रणाम किया और शुक्रवार को वैभव लक्ष्मी का व्रत करने और वैभव लक्ष्मी व्रत की कहानी सुनने का संकल्प लिया। शीला ने जब अपनी आंखे खोली तो वहाँ कोई नहीं था। वह वृद्ध महिला अंतर्ध्यान हो गई थी। शीला को आभास हो गया था की स्वयं माता लक्ष्मी उसके घर आई थी।

अगले शुक्रवार को शीला ने लक्ष्मी माता का व्रत रखा। प्रातःकाल उठकर स्नान किया और माता लक्ष्मी को नमन किया और व्रत का संकल्प लिया। उसके पास नए वस्त्र लाने को धन नहीं था इसलिए जो भी फटे पुराने कपड़े बचे थे उन्हे जल से स्वच्छ करके धारण किया। लक्ष्मी माता की पूजा अर्चना करके वैभव लक्ष्मी व्रत की कहानी सुनी। घर में प्रसाद लाने के लिए पैसे नहीं थे तो थोड़ा था अनाज बेचकर प्रसाद लाई और अपने पति को खिलाया ।


अगले दिन से ही उसके पति का हृदय परिवर्तन होने लगा। उसका व्यवहार शांत प्रवर्ती का होने लगा और उसने शीला पर हाथ उठाना छोड़ दिया।धीरे धीरे उसने सारे तामसिक कार्य छोड़ दिए और किसी सेठ के यहाँ नौकरी करने लगा।शीला ने वैभव लक्ष्मी व्रत लगातार 21 शुक्रवार तक जारी रखा। माता लक्ष्मी शीला की इस तपस्या से बहुत प्रसन्न हुई और उसे सुखी ग्रहस्त जीवन का आशीर्वाद दिया।


उनकी दरिद्रता दूर होने लगी। उसके पति के खूब परिश्रम करके अपनी खुद की दुकान खोल ली। 21 शुक्रवार होने पर शीला ने पूर्ण विधि विधान से वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्धयापन किया ।इस तरह शीला आजीवन लक्ष्मी माता के दर्शन करने मंदिर जाती और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद उस पर हमेशा बना रहा।


हे लक्ष्मी माता ! जिस तरह आपने शीला को वैभव लक्ष्मी व्रत का पुण्य दिया और उस पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखा। उसी तरह हम भी आज आपके वैभव लक्ष्मी व्रत कथा सुन रहे हैं। हे माता हमसे कोई गलती हो तो क्षमा करना और हमेशा अपनी क्षत्र छाया में रखना। जय माता लक्ष्मी !!

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शुक्रवार को लक्ष्मी माता का व्रत रखकर हम अपने घर परिवार के लिए धन और वैभव की कामना करते हैं। व्रत रखकर हम अपने शुभचिंतकों को लक्ष्मी माता के व्रत की शुभकामनाएं भेजते हैं। अगर आप भी शुक्रवार के बधाई संदेश की images download करना चाहते हैं तो हमारे pinterest page को visit करें।

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