भगवान शनि की उपासना में शनिवार व्रत के बाद shanivar vrat katha पढ़ी जाती है। शनिदेव को देवों के देव माना जाता है। शनिदेव स्वयं सूर्य के पुत्र हैं। शनिदेव के जल्दी क्रोधित होने वाले स्वभाव के कारण स्वयं सूर्यदेव शनिदेव से नाराज रहते है। माना जाता है की शनिदेव की बुरी दशा साढ़े साती यानि साढ़े सात साल तक रहती है। इसलिए शनिदेव को प्रसन्न रखने के लिए 7 शनिवार के व्रत रखकर Shani Dev Ki Katha पढ़ना शुभ माना जाता है।
shanivar vrat katha
मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में स्वर्ग लोक में सभी नौ गृहों के देवता विराजमान थे। अचानक उनमें किसी बात पर विवाद हो गया। विवाद की वजह थी की सबसे बड़ा और महान देव कौन है ? सारे नौ गृह सूर्य, चंद्रमा, मंगल , बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहू और केतू अपने अपने प्रभाव को स्थापित करने के लिए लड़ने लगे। विवाद सुलझने की बजाय और उलझता चला गया तो सभी देवता स्वर्ग लोक के राजा इंद्रदेव के पास गए।
इंद्रदेव के पास जाकर सारे देवताओं ने अपना अपना पक्ष रखा और उनमें से सर्वश्रेष्ठ देव चुनने का आग्रह किया। इंद्रदेव ने सारा विवाद सुनने के बाद कहा ” हे नव गृहों ! आप सभी बहुत ही पुरुषार्थी और पराक्रमी देव हो। आप लोगों में सर्वश्रेष्ठ देव चुनना मेरे लिए संभव नहीं होगा। लेकिन पृथ्वी लोक पर एक राजा है जो यह कार्य करने में समर्थ है। उस यशस्वी राजा का नाम है राजा विक्रमादित्य । मैं आप सबको उन्ही के पास ले चलता हूँ वो जरूर आपके विवाद का हल निकालेंगे।
सभी देवता देवराज इंद्र की अगुवाई में राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे। राजा विक्रमदित्य ने सभी देवताओं का बहुत आदर सत्कार किया और उनसे पृथ्वी लोक पर आने का कारण पूछा। तब इंद्रदेव ने सारा विवाद राजा विक्रमादित्य को सुनाया। विवाद सुनकर विक्रमादित्य भी चिंता में पड़ गए कि किस देवता को बड़ा बताए और किसे छोटा। जिस भी देवता को वो सबसे छोटा बताएंगे उसके क्रोध का कहर उन्हे झेलना पड़ेगा लेकिन इंद्रदेव का आग्रह वो कैसे टाल सकते थे। बहुत समय सोचने के बाद उन्हे एक उपाय सुझा। विक्रमादित्य ने सभी देवताओ के लिए नौ धातुओं सोना, चांदी, कांस्य, रांगा, जस्ता, अभ्रक, तांबा, सीसा और लोहे से नौ अलग-अलग सिहासन बनवाए।
राजा विक्रमादित्य ने सभी सिंहासनों को अपने धातु गुण के अनुसार क्रमानुसार रखा और सभी देवताओं से अनुरोध किया की सभी अपने अपने पसंद के सिंहासन पर विराजें। सभी देवताओं ने पहले सोने, चांदी आदि धातुओं से बने सिंहासन चुने। शनि देव को सबसे अंत में लौहे का सिंहासन प्राप्त हुआ। तब राजा विक्रमादित्य ने कहा की आप देवों ने अपना फैसला स्वयं कर दिया है। जो देवता सबसे अंत के लोहे के सिंहासन पर विराजमान हुआ है वही सबसे छोटा है।
राजा विक्रमादित्य के निर्णय से शनि देव बहुत क्रोधित हो गए और आवेश में आकर राजा से बोले ” हे राजन ! सभी देवताओं में सबसे छोटा बताकर तुमने मेरा घोर अपमान किया है। तुम्हारा ये पाप क्षमा योग्य नहीं है। शायद तुम्हें मेरे क्रोध की पराकाष्ठा का संज्ञान नहीं है। मेरे क्रोध की साढ़े-साती से तो प्रभु श्रीराम को वनवास और रावण को मृत्यु का सामना करना पड़ा था। फिर तू तो एक मामूली राजा है। बाकी गृहों की तरह मैं एक राशि पर कुछ दिन या कुछ महीने नहीं रहता, अगर मेरी साढ़े साती किसी राशि पर आ जाती है तो वह साढ़े सात साल तक नहीं जाती। इतना कहकर शनिदेव वहाँ से चले गए।
समय निकला और राजा विक्रमादित्य की शनि की साढ़े साती लग गई और उनका भाग्य दुर्भाग्य की तरफ पलटने लगा। जैसे जैसे समय निकलता गया शिनीदेव का क्रोध और भी बढ़ता गया। एक बार शनिदेव घोड़ों के व्यापारी बनकर राजा विक्रमादित्य की नगरी में गए। शनिदेव अपने साथ सर्वोतम नस्ल के घोड़े लेकर नगरी गए जिसकी खबर राजा तक भी पहुँच गई।
राजा ने व्यापारी से अच्छी-अच्छी नस्ल के घोड़े खरीदे तो व्यापारी ने खुश होकर एक घोड़ा राजा को उपहार स्वरूप दिया। राजा व्यापारी का घोड़ा उपहार स्वरूप पाकर बहुत प्रसन्न हुआ। घोड़ा कद काठी से बहुत सूडोल था और राजा को बहुत पसंद आया। राजा ने तुरंत घोड़े की सवारी करने का निश्चय किया। जैसे ही राजा घोड़े पर बैठा घोड़ा तुरंत हवा की रफ्तार से घने जंगल की तरफ भागने लगा। राजा के सैनिक और नौकर बहुत पीछे रह गए। अंत में घने जंगल में पहुँच कर घोड़ा अचानक अदृश्य हो गया।
अब राजा घने जंगल में अकेला भूख प्यास से भटकने लगा। भटकते भटकते राजा विक्रमादित्य को एक भेड़ बकरियाँ चराने वाला चरवाहा मिला। चरवाहे को राजा की हालत पर बहुत दया आई लेकिन वह राजा को पहचान नहीं सका। चरवाहे ने राजा को जल भेंट किया और जंगल से बाहर निकलने का मार्ग बताया। राजा विक्रमादित्य ने प्रसन्न होकर चरवाहे को उपहार में अपनी एक मुद्रिका दी और शहर की तरफ निकल पड़ा। शहर पहुँच कर राजा एक व्यापारी की दुकान पर गया वहाँ व्यापारी ने राजा का स्वागत किया और भोजन कराने अपने घर ले गया।
व्यापारी के घर में जिस कमरें में राजा आराम कर रहे थे उसी कमरे में एक सोने का हार रखा हुआ था। जैसे ही व्यापारी भोजन लेने अंदर गया अचानक वो हार गायब हो गया। व्यापारी को जब अपना हार नहीं मिला तो उन्होंने राजा को चोर समझा और राज्य के सैनिकों को सौंप दिया। इस तरह राजा का दुर्भाग्य उनका पीछा नहीं छोड़ रहा था और शनिदेव का क्रोध भी शांत नहीं हो रहा था।
सैनिक राजा को पकड़कर राज कारागृह ले गए। कुछ दिन मुकदमा चलने के बाद अंत में राजा को चोरी का दोषी करार दिया गया। तब उस नगरी के राजा ने राजा विक्रमादित्य को चोरी का आरोपी मानकर उसके हाथ पैर काटने का आदेश दिया। सैनिकों ने राजा विक्रमादित्य के दोनों हाथ पैर काटकर उसे नगरी से बाहर फेंक दिया।
राजा अपंग हालत में शहर से बाहर पड़ा था तभी वहाँ से एक तेली अपनी बैलगाड़ी लेकर गुजर रहा था। राजा की हालत पर उसे तरस आ गया और वह राजा को अपनी बैलगाड़ी में डालकर अपने घर ले आया। तेली ने राजा को भोजन दिया और अपने कोल्हू पर बैठा दिया। राजा बैठा बैठा कोल्हू के बैल हाँकता रहता और तेली अपना दूसरा काम करता। इसके बदले में तेली राजा को भोजन देता और राजा अपना जीवन यापन करता। इस तरह शनिदेव की साढ़े साती लगने से पृथ्वीलोक का सबसे पराक्रमी राजा भी पंगू होकर कोल्हू का बैल हाँकने को मजबूर हो गया।
काल का चक्र घूमता रहा और राजा की साढ़े साती के दिन ढल गए। राजा को संगीत का बहुत शौक था और खुद भी बहुत अच्छा गाते थे। एक बार वर्षा ऋतु के एक दिन राजा मल्हार गा रहा था तभी वहाँ से नगरी की राजकुमारी की सवारी निकली। राजकुमारी को राजा विक्रमादित्य का मल्हार इतना पसंद आया की उसने सैनिकों से कहा ” सैनिकों ! जो कोई भी ये मल्हार गा रहा है उसकी आवाज में जादू है। उसे ढूंढ के लाए हम उन्ही से विवाह करेंगे। “
राजकुमारी की आज्ञा पार्क सैनिक मल्हार गाने वाले को ढूँढने निकल पड़े। बहुत ढूँढने के बाद उन्हे राजा विक्रमादित्य मल्हार गाते हुवे मिले। सैनिकों ने अपंग हो चुके राजा विक्रमादित्य को राजकुमारी के सामने पेश किया। राजा विक्रमादित्य की आवाज से सम्मोहित राजकुमारी ने राजा के अपंग होने के बावजूद उन्ही से विवाह का निश्चय किया। राजकुमारी के मंत्रीगण ने राजकुमारी को बहुत समझाया लेकिन राजकुमारी ने उनकी एक न मानी ।
राजकुमारी और राजा विक्रमादित्य का विवाह सम्पन्न हुआ और राजा विक्रमादित्य और राजकुमारी महल में रहने लगे। एक रात्री को शनि देव ने विक्रमादित्य को स्वपन मे दर्शन दिया और कहा ” हे राजन ! तुमने हमारा अपमान किया था और तुम्हें हमारे अपमान करने का फल भोगना पड़ा। अब तो तुम्हें समझ आ गया होगा शनि की साढ़े साती लगने पर क्या दशा होती है। “
राजा ने शनि देव को प्रणाम किया और उनसे माफी मांगी। राजा ने शनि देव से विनती की “हे देव उन्हे जो सजा मिली है ऐसी सजा आज के बाद किसी को मत देना। उन्हे जो विपतियाँ झेलनी पड़ी हैं वो किसी को ना झेलनी पड़ें। “
शनि देव ने राजा की प्रार्थना स्वीकार कर ली और कहा ” हे राजन ! आज के बाद जो भी भक्त शनिवार का व्रत पूरे सेवा भाव और निष्ठा से शनिवार व्रत कथा विधि से करेगा मैं उस पर मेहरबान रहूँगा और उसके सारे कष्ट हर लूँगा। ” इतना कहकर शनिदेव अंतर्ध्यान हो गए।
सुबह जब राजा विक्रमादित्य उठे तो उन्हे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। शनिदेव ने उन्हे उनके हाथ पैर वापस दे दिए थे। राजकुमारी की भी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। राजा विक्रमादित्य ने राजकुमारी को अपनी सारी कहानी बताई की कैसे शनि की साढ़े साती से वो एक पराक्रमी राजा से एक अपंग बन गए। उसके बाद राजा और राजकुमारी ने हमेशा शनि देव के लिए शनिवार का व्रत रखकर shanivar vrat katha सुनने का प्रण लिया।
सारे नगर में यह बात फैल की की तेली की घर जो अपंग व्यक्ति था वो राजा विक्रमादित्य थे। इस बात का पता उस व्यापारी को भी लगा जिसने राजा को चोर मानकर सैनिकों से गिरफ्तार करवाया था। व्यापारी तुरंत राजा विक्रमादित्य के पास गया और अपने किए की माफी मांगी। विक्रमादित्य ने उसे माफ कर दिया।
व्यापारी के अनुरोध करने पर विक्रमादित्य पुनः उसके घर भोजन पर गए। व्यापारी से तरह तरह के व्यंजन बनाकर विक्रमादित्य का खूब आदर सत्कार किया जिससे उसके पाप का प्रायश्चित हो सके। जब राजा भोजन कर रहे थे तब फिर से चमत्कार हुआ और व्यापारी का जो हार गायब हुआ था वह अचानक प्रकट हो गया।
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यह चमत्कार देखनर सबने शनि देव की महिमा मानी और उन्हे प्रणाम किया। विक्रमादित्य पुनः अपनी नगरी लौटे तो उनकी प्रजा बहुत खुश हुई। राजा विक्रमादित्य ने घोषणा करवाई की उन्होंने शनिदेव को देवताओं में सबसे छोटा बताया था लेकिन अब उन्हे ज्ञान हो गया है शनिदेव ही सबसे बड़े देव है। वही देवों के देव है। इसलिए पूरी प्रजा को शनिवार का व्रत रखकर shanivar vrat katha सुननी चाहिए।
उसके बाद राजा विक्रमादित्य और उनकी प्रजा नियमित रूप से हर शनिवार , शनिदेव का व्रत रखती और शनिदेव की कथा सुनती। शनिदेव राजा और उनकी प्रजा से बहुत प्रसन्न हुवे और हमेशा उनपर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखी।
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शनिवार की आरती PDF
शनिवार व्रत में शनिदेव की विधि विधान से पूजा अर्चना करके शनिवार की आरती गाई जाती है। शनिदेव की आरती में भगवान शनि को भक्तों की हितकारी और सूर्यदेव से छाया देने वाला कहा गया है। अतः शनि पूजन में नीचे दी गई भगवान शनिदेव की आरती जरूर पढे।
शनि देव की आरती लिखित में
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी ॥
जय जय श्री शनिदेव ॥
श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी ।
नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी ॥
जय जय श्री शनिदेव ॥
क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी ।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी ॥
जय जय श्री शनिदेव ॥
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी ।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी ॥
जय जय श्री शनिदेव ॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमरिन नर नारी ।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी ॥
जय जय श्री शनिदेव ॥
शनिवार की आरती images
शनिवार के व्रत की पूजा विधि में शनिदेव की आरती जरूर पढ़ी जाती है। सच्चे मन से शनिदेव की आरती करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं एवं उनकी कृपा दृष्टि जातक पर बनी रहती है।
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FAQs
शनिवार का व्रत कितने बजे खोला जाता है?
शनिवार का व्रत सूर्यास्त के बाद खोला जाता है। शनिवार व्रत में यह ध्यान रखें की शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले कभी न करें वरना व्रत टूट सकता है। इसलिए सूर्यास्त के 1 घंटे बाद आप व्रत खोलकर भोजन कर सकते हैं।
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शनिवार के व्रत कितने करने चाहिए ?
शनिवार के व्रत 7, 19, 31 या 51 की संख्या में करें तो बहुत ही शुभ माना जाता है। जब व्रत का आरंभ करें उस दिन हाथ में जल और काले तिल लेकर व्रत का संकल्प ले की आप कितने व्रत करेंगे। जब आपके संकल्प लिए व्रत पूर्ण हो जाए तो उसके अगले शनिवार को यानि 8 वें, 20 वें, 32 वें, या 52 वें शनिवार को व्रत का उद्यापन जरूर करें। माना जाता है की बिना उद्यापन के कभी भी व्रत का फल पूर्ण रूप से नहीं मिलता है।
शनिवार का व्रत कब से शुरू करना चाहिए ?
शनिवार का व्रत किसी की माह के शुक्ल पक्ष के पहले शनिवार से आरंभ करना शुभ माना जाता है। ऐसा माना जाता है की अगर आप श्रावण मास के शुल्क पक्ष के पहले शनिवार से ये व्रत आरंभ करें तो इसका विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
शनिवार का व्रत किसको करना चाहिए ?
शनिदेव को प्रसन्न करने का सबसे उत्तम और कारगर उपाय है की शनिवार का व्रत करें। वैसे तो शनिदेव की पूजा अर्चना कोई भी कर सकता है लेकिन विशेषकर जिन लोग का शनि कमजोर है या जिनकी साढ़े साती चल रही हैं उन्हे तो शनिवार का व्रत जरूर करना चाहिए। जिनकी कुंडली में पितरदोष हो उन्हे भी शनिदेव का व्रत रखना चाहिए। पितृदोष को हरने में शनिदेव की पूजा बहुत लाभदायक मानी जाती है। इसके अलावा अगर किसी के घर का कोई हिस्सा गिर गया है या धन संपदा का नुकसान हो रहा है, बाल झड़ रहे हैं तो भी शनिवार का व्रत जरूर करें।
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