सनातन धर्म में सोमवार का दिन भोलेनाथ को समर्पित किया गया है। यही आप भी सोमवार का व्रत रखते हैं और जानना चाहते हैं की somvar vrat ki puja kaise karte hain ? तो यह post आपके लिए है। प्रतिसोमवार का व्रत भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। भोलेनाथ की पूजा बाकी देवताओं से थोड़ी अलग होती हैं। इसलिए भोले के भक्तों के मन में हमेशा सवाल रहता है की सोमवार के दिन कैसे पूजा करनी चाहिए? और शिव पूजा में क्या क्या सामग्री चाहिए ? इस पोस्ट में हम सोमवार शिवपूजा की सम्पूर्ण विधि पढ़ेंगे साथ ही यह भी जानेंगे की शिव पूजा में क्या क्या नहीं चढ़ाना चाहिए ?
शिव पूजा का सही समय
किसी भी पूजा को करने के नियमों में पूजा का समय भी महत्वपूर्ण नियम होता है। जैसे शनिदेव की पूजा कभी सूर्यास्त से पहले नहीं की जाती। शिव पूजा का सही समय प्रदोष काल माना जाता है। प्रदोष काल दिन के अंत और रात के शुरू होने के बीच का समय होता है। सूर्यास्त के 45 मिनट पहले से सूर्यास्त के 45 बाद के समय को प्रदोष काल कहते हैं। इसके अलावा आप प्रातःकाल जल्दी भी भगवान शिव की पूजा कर सकते हैं।
शिव पूजा में क्या क्या सामग्री चाहिए ?
भोलेनाथ की पूजा में उपयोग आने वाली सामग्री अन्य देवताओं से थोड़ी अलग होती है। जिसे कोई पसंद नहीं करता वो भोलेनाथ की शरण में आता है। धतूरा आकडे का पुष्प आदि जिनमें ना खुशबू होती हैं, ना दिखने में सुन्दर होते हैं उन्हे भोलेनाथ स्वीकार करते हैं। तो आइए जानते हैं शिव पूजा में क्या क्या सामग्री चाहिए ? सोमवार की पूजा की सामग्री आपको एक दिन पहले ही ले आनी चाहिए जिससे पूजा के समय कोई अनावश्यक व्यवधान ना पड़े।
- चूंकि सोमवार के व्रत में भोलेनाथ के साथ उनके समस्त परिवार की पूजा का प्रावधान है इसलिए पूजा के लिए भगवान शिव की ऐसी फ़ोटो लें जिसमें उनका पूरा परिवार हो। साथ मने एक छोटा शिवलिंग भी जरूर लें।
- भस्म, केसर, भांग, धतूरा ।
- तांबे का कलश( जल ), चंदन, मौली।
- पंचामृत :- गाय का कच्चा दूध, शक्कर, घी, दही, शहद ।
- मिश्री, , बेलपत्र, अक्षत
- धूप, दीपक, गंगाजल, सफेद चंदन
- इत्र, कुमकुम, जनेऊ, गुलाल
- लौंग, सुपारी, कपूर
- पुष्प :- सफेद पुष्प, धतूरा, आकडे के फूल, शमीपत्र, पीले पुष्प ( गणेश जी के लिए ), दूर्वा घास, लाल रंग के फूल ( माता गौरी के लिए )
- भोग :- ऋतुफल , मिश्री या गुड़
- दक्षिणा के पैसे ।
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somvar vrat ki puja kaise karte hain सोमवार के व्रत की पूजा कैसे करनी चाहिए ?
शिवपुराण और अन्य प्राचीन पुस्तकों में शिवपूजा से संबंधित नियमों का उल्लेख मिलता है। लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए की सोमवार के व्रत के नियमों का पालन हमें केवल शिवपूजा के समय ही नहीं बल्कि पूरे दिन करना चाहिए। पूरे सोमवार की हमारी दिनचर्या ऐसी होनी चाहिए जो भोलेनाथ को प्रसन्न करें। पूरे दिन सात्विक दिनचर्या रखें और नीचे बताए नियमों से भगवान शिव की सोमवार पूजा करें।
- सुबह की दिनचर्या :- प्रातःकाल जल्दी उठे और स्नान करने स्वच्छ और सात्विक वस्त्र धारण करें ।
- व्रत का संकल्प :- अगर आप व्रत शुरू कर रहे हैं तो पहले सोमवार को व्रत का संकल्प लिया जाता है। शिवजी की प्रतिमा के सामने हाथ में जल , मौली, पुष्प और अक्षत लेकर संकल्प लें की आप कितने सोमवार का व्रत करेंगें/ करेंगी।
- शिव पूजा का समय :- शिवजी की पूजा सुबह जल्दी या फिर शाम को प्रदोष काल में की जाती है।
- प्रतिमा स्थापना :- लकड़ी की चौकी पर पीला या लाल कपड़ा बिछाने के बाद सम्पूर्ण शिव परिवार की फोटो जिसमे शिवजी, माता गौरी, कार्तिकेय और गणेश जी हो, स्थापित करें। अगर आपके पास शिव परिवार की फोटो नहीं हैं तो सबकी अलग अलग फोटो भी ले सकते हैं।
- दीपकलश की स्थापना :- कलश स्थापना के लिए सबसे पहले आटे या चावल से आठ पंखुड़ियों वाला अष्टदल कमल बनाएं और उस पर कलश की स्थापना करें। अब कलश में साबूत हल्दी का एक टुकड़ा, सुपारी, अक्षत और दक्षिणा रूपी सिक्के आदि डालें। अब कलश पर आम के पत्ते लगाने के बाद उस पर चावलों से भरी हुई कटोरी रखें। अब कटोरी में दीपक रखें। इस तरह दीपकलश की स्थापना करें।
- दीप प्रज्वलन और देव आव्हान :- अब दीपक जलाकर हाथ में कलश और पुष्प लेकर भगवान शिव , माता गौरी और गनेश जी का आव्हान करें।
- गौरी गणेश पूजा :- किसी भी पूजा की शुरुवात भगवान गणेश और माता गौरी से होती है। इसलिए उनकी विधिवत पूजा करें। उन्हे मौली, जनेऊ, पुष्प, अक्षत, ऋतुफल आदि पूजा का सामान भेंट करें। माता गौरी, कार्तिकेय और गणेश जी को सिंदूर और हल्दी का तिलक लगते हैं। भगवान गणेश को दूर्वा घास अर्पित करें।
- शिवपूजा :- गौरी गणेश पूजा के साथ साथ भोलेनाथ की भी पूजा करें। उन्हे सफेद चंदन का तिलक लगाए। भस्म अर्पित करें। बेलपत्र, जनेऊ, आकडे के पुष्प, भांग, धतूरा, ऋतुफल आदि अर्पित करें।
- शिवजी का अभिषेक :- शिवपूजा में शिवलिंग का अभिषेक जरूर करना चाहिए। शिवजी को अभिषेक बहुत प्रिय माना जाता है।। शिवलिंग अभिषेक मे दूध का अभिषेक करने के बाद जल का अभिषेक भी करें । दूध की जगह दही या शहद का अभिषेक भी किया जा सकता है । इसके अलावा आप पंचामृत बनाकर भी अभिषेक कर सकते हैं। लेकिन अंत में जलाभिषेक से ही शिवलिंग अभिषेक पूर्ण माना जाता है ।
- भोग :- भोग में आप ऋतुफल, नवैध, मिठाई आदि भेंट कर सकते हैं।
- सोमवार व्रत कथा :- भोग लगाने के बाद सोमवार व्रत कथा सुने। अगर आपके पास व्रत कथा पुस्तक है तो उससे पढ़ें वरना मोबाईल आदि से भी पढ़ सकते हैं।
- शिवलिंग अभिषेक के बाद सच्चे मन से भोलेनाथ को याद करे और पूरे दिन में व्रत का संकल्प लें । सोमवार के व्रत में दिन के किसी भी एक समय खाना खाना होता है ।
- प्रदोष काल शिव पूजा :- अगर आपने सुबह पूजा नहीं की है तो प्रदोष काल में ऊपर बताई गई विधि द्वारा शिवपूजा करें। इसके बाद आप भोजन गृहण करें। याद रहे शिवव्रत में आप केवल एक ही बार भोजन गृहण कर सकते हैं।
सोमवार की शिवजी की आरती
ओम जय शिव ओंकारा
स्वामी जय शिव ओंकारा ।।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा
ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे
ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी
सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा
ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥
यह भी पढे :- सोमवार व्रत का भोजन – शिवव्रत के क्या खाएं और क्या नहीं खाए।
FAQ’s
सोमवार का व्रत कितने बजे खोलना चाहिए ?
सोमवार के व्रत में दिन मे एक बार खाना खा सकते हैं । सोमवार सूर्योदय से लेकर मंगलवार सूर्योदय तक एक बार अन्न गृहण करना होता है। जब हम खाना खाते हैं तो उसे व्रत खोलना नहीं माना जाता है। सोमवार का व्रत 24 घंटे चलता है और 24 घंटे में एक बार खाना खाते हैं।
शिव पूजा में क्या क्या नहीं चढ़ाना चाहिए ?
भोलेनाथ की पूजा में ऐसी चीजे चढ़ाई जाती है जो किसी अन्य देवता को नहीं चढ़ाई जाती है जैसे भांग, आकडे का फूल, धतूरा आदि। लेकिन ऐसा नहीं है की भोलेनाथ पर सब चीजों का ही भेंट चढ़ा सकते हैं। हमारे शास्त्रों और प्राचीन पुस्तकों में कुछ ऐसी चीजों का वर्णन भी मिलता है जिन्हे भोलेनाथ को कभी अर्पण नहीं करना चाहिए। तो आइए जानते हैं की शिव पूजा में क्या क्या नहीं चढ़ाना चाहिए ?
- केतकी और केवड़े के फूल :- ऐसा माना जाता है की भगवान शिव ने स्वयं केतकी के फूल को अपनी पूजा से वर्जित किया था । इसी तरह केवड़े का फूल भी शिवजी को अर्पित नहीं किया जाता है।
- हल्दी :- हल्दी भगवान शिव को नहीं चढ़ाई जाती लेकिन माता गौरी को हल्दी चढ़ाई जाती है इसलिए शिवपूजा में हल्दी तो उपयोग होती है लेकिन वह शिव परिवार के अन्य सदस्यों को भेंट की जाती है।
- तुलसी :- तुलसी भी भगवान शिव और गणेश जी को नहीं चढ़ाई जाती । एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने माता तुलसी के असुर पति जालंधर का वध किया था। उसी के बाद भोलेनाथ की पूजा में कभी तुलसी का भोग नहीं लगाया जाता। पूरी कथा -> माता तुलसी की कथा ।
- शंख :- प्राचीन ग्रंथों में वर्णित एक प्राचीन कथा के अनुसार भगवान शिव ने शंखचूड़ नामक राक्षस का वध किया था। इसलिए उनकी पूजा में कभी भी शंख का उपयोग नहीं किया जाता है।
- कुमकुम और रोली :- कुमकुम और रौली माता गौरी की पूजा में उपयोग ली जाती है लेकिन भगवान शिव की पूजा में वर्जित है। कुमकुम रौली आदि स्त्री सौन्दर्य में उपयोग लाया जाता है जबकि भोलेनाथ पुरुषत्व के प्रतीक माने जाते हैं।
भगवान शिव को केतकी के फूल क्यों नहीं चढ़ाए जाते?
इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मदेव में विवाद हो गया की दोनों में कौन श्रेष्ठ है। विवाद को सुलझाने के लिए दोनों भोलेनाथ के पास गए । तब भगवान शिव ने अपने तप से अत्यंत विशाल ज्योतिर्लिंग प्रकट कर दिया। अंततः इस बात पर सहमति हुई की जो भी इस ज्योतिर्लिंग का आरंभ और अंत होने का स्थान खोज लेगा वही दोनों में श्रेष्ठ माना जाएगा। इसके बाद भगवान विष्णु और ब्रह्म उस ज्योतिर्लिंग का आरंभ और अंत होने का स्थान खोजने निकल पड़ें।
बहुत प्रयत्न करने के बाद भी भगवान विष्णु उस ज्योतिर्लिंग का आरंभ और अंत होने का स्थान नहीं खोज पाए। ब्रह्मदेव भी ज्योतिर्लिंग का आरंभ और अंत होने का स्थान नहीं खोज पाए। लेकिन ब्रह्मदेव ने खुद को श्रेष्ट बताने के लिए झूठ का सहारा लिया। उन्होंने केतकी के पुष्प को यह झूठ बोलने को राजी कर लिया की ब्रह्मदेव ने ज्योतिर्लिंग का आदि अंत खोज लिया है। वापस आकर ब्रह्मदेव ने बताया की उन्होंने शिवजी द्वारा उत्पन्न ज्योतिर्लिंग का अंत खोज लिया है और केतकी ने फूल ने इस बात की हाँ भर दी।
लेकिन भगवान शिव इस बात को जान गए की ब्रह्मदेव और केतकी का फूल झूठ बोल रहे हैं। इस पाप को देखकर भगवान शिव बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मदेव का एक सिर काट दिया तथा केतकी के फूल को उनकी पूजा से हमेशा के लिए वर्जित करने का श्राप दिया।
इसके बाद से भगवान शिव की भक्त उनकी पूजा में कभी भी केतकी का फूल नहीं चढ़ाते ।
Quora :- भगवान शिव को केतकी के फूल क्यू नहीं चढ़ाए जाते हैं ?
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