somvar vrat katha हमें भगवन शिव जी की भक्ति की शक्ति से अवगत कराती है। सोमवार व्रत की कथा हमे बताती है की कैसे व्यापारी ने सच्चे मन से भगवान शिव का सोमवार का व्रत करके संतान प्राप्ति की और संतान की मृत्यु के बाद पुनः जीवित भी किया। यह चमत्कार भोलेनाथ की सच्ची भक्ति से ही संभव हो पाया। हिन्दू समाज में सोमवार का व्रत भगवान शिव को प्रसन्न करके मनोकामना पूर्ण करने के लिए किया जाता है ।
सोमवार का दिन भोलेनाथ को समर्पित करके, भोले के भक्त पूरे दिन अन्न का त्याग करके सात्विक भाव से भोले को याद करते है। शायद ही कोई ऐसा हिन्दू धर्म को मानने वाला होगा जिसने कभी न कभी भोले के चरणों में जाने के लिए सोमवार का व्रत ना रखा हो, फिर भले ही वो पुरुष हो या महिला । तो भोले के भक्तों आज हम आपको सोमवार व्रत की कथा सुनाने जा रहे हैं । जय भोले !!
somvar vrat ki katha in hindi सोमवार की कहानी शिव जी की कथा
बात बहुत पुरानी है किसी नगर मे एक व्यापारी रहता था। उसके पास धन संपदा की कोई कमी नहीं थी दुनिया के सारे सुख उसके पास थे। लेकिन फिर भी वह प्रसन्न नहीं था क्यूंकी उसके कोई संतान नहीं थी। विवाह के काफी समय बाद भी उसे संतान सुख नहीं मिल था। उम्र निकलती जा रही थी, व्यापारी इसी चिंता में कुंठित जीवन जीने लगा। व्यापारी भोलेनाथ का भगत था। उसने हर सोमवार भोले की आराधना में सोमवार का व्रत रखना शुरू किया। व्यापारी हमेशा सोमवार व्रत की विधि का निष्ठा से पालन करता और सारे नियम मानता।
संतान प्राप्ति की इच्छा उसे सात्विक जीवन की ओर ले जाने लगी। बहुत समय निकाल गया लेकिन व्यापरी ने भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति जारी रखी। वह हर सोमवार व्रत रखता और शिवजी की सोमवार की पूजा सच्ची श्रद्धा और विश्वास से करता। उसकी अटल इच्छा और भक्ति देखकर माता पार्वती का दिल पसीज गया। माता पार्वती ने भगवान शिव से उनके सच्चे भक्त की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की । भगवान शिव भी व्यापारी के सच्चे मन से किए गए सोमवार के व्रत से प्रसन्न हो गये।
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भगवान शिव ने व्यापारी को दर्शन दिए और उसकी मनोकामना पूछी। व्यापारी अपने आराध्य देव को देखकर धन्य हो गया। व्यापारी में भोलेनाथ को सत सत नमन किया। वह भोलेनाथ के चरणों मे गिर पड़ा और संतान प्राप्ति की मनोकामना मांगी। भगवान शिव ने व्यापारी को संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया लेकिन भोलेनाथ बोले ” वत्स ! मैं तुम्हें संतान प्राप्ति का वरदान देता हूँ लेकिन तुम्हारी संतान की उम्र 12 वर्ष ही होगी “। इतना कहकर भगवान शिव अदृश्य हो गये।
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व्यापारी को संतान प्राप्ति का वरदान तो मिल गया लेकिन वह खुश नहीं हो सका क्यूंकी भगवान शिव ने उसकी संतान की उम्र 12 वर्ष ही बताई थी। उसे संतान होने से पहले ही अपनी संतान की अकाल मृत्यु की चिंता सताने लगी। समय बीतता गया और भगवान शिव के आशीर्वाद से व्यापारी की पत्नी गर्भवती हो गई। समय आने पर व्यापारी की पत्नी ने एक सुंदर और स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। व्यापारी के जीवन मे सारे सुख पूर्ण हो गये । लेकिन उसे बालक की अकाल मृत्यु की चेतावनी याद रही इसलिए वह भोलेनाथ को खुश रखने के लिए हर सोमवार व्रत करता रहा ।
समय का पहिया घूमता गया व्यापारी अपने परिवार के साथ सुखपर्वक अपना जीवन यापन करने लगा। व्यापारी का पुत्र भी बड़ा होने लगा और कब 11 वर्ष का हो गया पता ही ना चला। बालक के 11 वर्ष के होते ही व्यापारी ने उसे अध्ययन के लिए अपने मामाजी के साथ काशी भेज दिया। जब बालक और उसके मामाजी काशी जा रहे थे तो मार्ग मे 1 राज्य आया । चूंकि काशी तक का रास्ता लंबा था इसलिए उन्होंने उसी राज्य में रात गुजरने के फैसला किया।
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उस राज्य के राजा की बेटी का विवाह उस दिन हो रहा था। लेकिन जिस राजकुमार से राजकुमारी का विवाह होने वाला था वह 1 आँख से काना था । राजकुमार के काने होने की बात राजकुमार के पिता ने छुपाई थी ताकि राजकुमारी कहीं शादी के लिए मना ना कर दे ।
व्यापारी का पुत्र कद काठी से काफी सुदृढ़ और सुंदर था। जैसे ही व्यापारी के पुत्र पर राजकुमार के पिता की नजर पड़ी उन्होंने एक योजना बनाई । उसने बालक के मामाजी से राजकुमारी से बालक की शादी करवाने का प्रस्थाव रखा।
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वह बालक के मामाजी से बोला – “मेरा पुत्र एक आँख से खाना है और मैंने यह बात राजकुमारी और राजा से छुपाई है। हो सकता है की शादी होते समय राजकुमारी राजकुमार की कानी आँख देख ले और शादी से मना कर दे , लेकिन एक बार शादी हो गई तो राजकुमारी मना नहीं कर पाएगी और हम दूल्हे बदल देंगे। जैसे ही शादी समाप्त हो जाएगी मैं तुम्हें बहुत सर धन देकर विदा कर दूंगा। “
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बालक के मामाजी को लालच आ गया और वे बालक की शादी राजकुमारी से करवाने के लिए राजी हो गए। बालक सात्विक विचारों का था। जब बालक को इस झूठ का पता चला तो उसे बहुत दुख हुआ। लेकिन अपने मामाजी के दबाव के कारण वह कुछ बोल नहीं पाया। उसने राजकुमारी से शादी तो कर ली । लेकिन, वह यह झूठ बोल नहीं पाया और जाते समय राजकुमारी की चुनरी पर सच लिख गया। राजकुमारी ने सच जानने के बाद उस झूठी शादी को मानने से मना कर दिया और राजकुमार को ठुकरा कर अपने महल लौट गई। मन ही मन राजकुमारी व्यापारी पुत्र की ईमानदारी से मोहित हो गई थी और अपना पति मान चुकी थी।
बालक ने काशी पहुँच कर अपना अध्ययन शुरू कर दिया। वह पूरे मन और निष्ठा से पढ़ाई करता था। लेकिन जैसे ही बालक के 12 वर्ष पूर्ण हुएउसने अकाल अपने प्राण त्याग दिए। मामाजी ने जैसे ही अपने मृत भांजे को देखा वो विलाप करने लगे। उन पर तो जैसे दुखों का पहाड़ टूट पड़ा हो। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की कैसे एकदम स्वस्थ बालक की अकाल मृत्यु हो गई। व्यापारी ने बालक की 12 वर्ष उम्र वाली बात उसके मामाजी को बताई नहीं थी।
उधर स्वर्ग लोक से माता पार्वती यह सब देख रही थी। माता से उनका दुख देखा नहीं गया। उन्होंने भोलेनाथ से कहा ” हे स्वामी ! पूरी उम्र व्यापरी ने आपकी भक्ति की, सारे सोमवार के व्रत पूरी श्रद्धा से किए। संतान प्राप्ति के वरदान के बाद भी उसने हमारी भक्ति में कभी कमी नहीं आने दी। इतने सच्चे भक्त का दुख मुझसे देखा नहीं जाता। कृपया व्यापारी के बालक को पुनः जीवित करें और उसे लंबी उम्र का वरदान दें।”
इधर अपने पुत्र की मृत्यु से बेखबर उसका पिता सोमवार के व्रत करता रहा और भगवान शिव की भक्ति मे लीन रहा।
भगवान शिव अपने भगत के इस भक्ति भाव को देखकर खुश हो गये और व्यापारी को उसके सोमवार के व्रत का फल दिया और बालक को पुनः जीवित कर लंबी उम्र का वरदान दिया । सोमवार के व्रत ने व्यापारी को पुनः उसकी मनोकामना पूर्ण करवाई और उसके पुत्र को जीवन दान दिया ।
बालक ने जीवित होकर काशी में ही रहने लगा और अपना अध्ययन शुरू रखा। अपनी पढ़ाई पूरी होने के बाद बालक और उसके मामाजी अपने घर की तरफ रवाना हो गए। रास्ते मे पुनः वही राज्य आया बहुत थके होने के कारण उन्होंने वहाँ विश्राम करने का फैसला किया।
संयोग से राजकुमारी के पिता वहाँ से गुजर रहे थे जैसे ही उन्होंने बालक को देखा उन्होंने बालक को पहचान लिया और उन्हे महल ले गए। महल मे उनका भव्य स्वागत किया। जैसे ही राजकुमारी ने व्यापारी पुत्र को देखा स्वामी कहकर पुकारा । सभी यह बात सुनकर हैरान हो गए तब राजकुमारी बोले ” पिता श्री ! चाहे धोके से ही हुआ हो लेकिन मेरा विवाह इन्ही से हुआ है और मन ही मन इन्हे अपना पति मान चुकी हूँ । कृपया अपने पितृ धर्म का पालन करें और मुझे अपने पति के साथ खुशी खुशी विदा करें।”
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राजा अपनी अपनी पुत्री राजकुमारी के विचारों से बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने राजकुमारी को व्यापारी पुत्र के साथ ससम्मान विदा कर दिया।
बालक अपनी पत्नी राजकुमारी को लेकर अपने घर आ गया। व्यापारी और उसकी पत्नी अपने पुत्र और पुत्रवधू को देख कर बहुत प्रसन्न हुए। व्यापारी ने भगवान शिव को उसके सोमवार के व्रत का फल देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद किया । उसके बाद व्यापारी , उसकी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधू सब नियमित रूप से सोमवार का व्रत रखने लगे।
हे भोलेनाथ ! जिस तरह व्यापारी की भक्ति और सोमवार के व्रत से अपने उनके सारे कष्टों को हर लिया उसी तरह जो व्यक्ति इस somvar vrat ki katha in hindi को सुन रहा है उस पर अपना आशीर्वाद बनाएं रखे। जाने अनजाने में अगर हमसे कोई भूल हो गई है तो हमने क्षमा दान दें।
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