अगर आपके द्वारा संकल्प लिए हुवे व्रत पूरे हो गए है तो आप सोच रहे होंगे की santoshi mata ka udyapan kaise karen ? उद्यापन की पूजा सामान्य पूजा से थोड़ी अलग होती है। उद्यापन में पूजा, ब्राह्मण भोग और दान पुण्य किया जाता है और 8 बालकों को भोजन कराया जाता है। तो आइए जानते हैं की संतोषी माता का उद्यापन कैसे किया जाता है ।
व्रत का उद्यापन क्या होता है ?
जब जातक द्वारा संकल्प लिए हुवे व्रत पूरे हो जाते हैं उसके बाद की अंतिम पूजा को व्रत का उद्यापन करना कहा जाता है। जैसे की अगर आपने संतोषी माता के 16 शुक्रवार व्रत रखने का संकल्प लिया है तो 16 शुक्रवार व्रत करने के बाद 17 वें शुक्रवार को जब आप अंतिम व्रत रखकर संतोषी माता की पूजा करेंगे वह व्रत का उद्यापन कहलाता है।
किसी भी व्रत का उद्यापन क्यों किया जाता है ?
हिन्दू धर्म के प्राचीन धर्म ग्रंथों के अनुसार किसी भी व्रत को करने का पुण्य तब तक नहीं मिलता है जब तक उस व्रत का उद्यापन नहीं किया जाता । मान्यता है की व्रत के उद्यापन के बिना व्रत अधूरा माना जाता है। उद्यापन में जातक दान, पुण्य यज्ञ आदि करके भगवान से प्रार्थना करता है की ” हे प्रभु ! मैंने मेरे द्वारा प्रण लिए हुवे व्रत पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से पूर्ण कर लिए हैं। अगर मुझसे व्रत में कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करें और मेरी मनोकामना पूर्ण करें। “
संतोषी माता का उद्यापन कब करना चाहिए
माना जाता है की शुक्रवार के संतोषी माता के 16 व्रत करने से माता आपकी मनोकामना जरूर पूर्ण करती है। इसलिए अगर अपने 16 शुक्रवार व्रत का संकल्प लिया है तो 17 वें शुक्रवार को संतोषी माता के व्रत का उद्यापन पूरे विधि विधान से करें। अगर आपने 16 से भी ज्यादा व्रत रखने का संकल्प लिया है तो व्रत पूरे होने के बाद उससे अगले शुक्रवार को उद्यापन की पूजा करें।
संतोषी माता के उद्यापन में क्या क्या सामग्री लगती है
संतोषी माता के व्रत के उद्यापन में जातक के मन में यह शंका रहती है की कही उसके द्वारा उद्यापन में कोई चूक न हो जाए। कोई पूजा की सामग्री कम नहीं रह जाए। तो आइए इस शंका को दूर करते हैं और जानते हैं की संतोषी माता के उद्यापन में क्या क्या सामग्री लगती है ?
- संतोषी माता और गणेश जी की प्रतिमा या फोटो ।
- लकड़ी की चौकी और लाल वस्त्र ( चौकी पर बिछाने के लिए )
- धूप, दीपक, अगरबती, शुद्ध घी।
- अढ़ाई सेर आटे का खाजा, अढ़ाई सेर आटे की खीर, अढ़ाई सेर चने की सब्जी ।
- आठों बालकों को भोजन के साथ दक्षिणा के लिए कुछ रुपये या अन्य कोई वस्तु। याद रखें सभी बालकों को एक समान ही वस्तु या पैसे दें।
- प्रसाद के लिए गुड़ और चना और पानी का कलश ।
- संतोषी माता को अर्पित करने के लिए लाल चुनरी।
- गणेश जी के लिए अक्षत, मौली, जनेऊ, लाल पुष्प, दूर्वा घास।
- पूजा के लिए पुष्प और पीले चावल/ अक्षत ( हल्दी मिले हुवे )।
यह भी पढ़ें :- संतोषी माता की व्रत कथा ।
यह भी पढ़ें :- संतोषी माता के व्रत में क्या खाएं और क्या ना खाएं।
संतोषी माता का उद्यापन कैसे किया जाता है? santoshi mata ka udyapan kaise karen
आपके द्वारा संकल्प लिए हुवे संतोषी माता के 16 व्रत पूर्ण होने पर उससे अगले यानि 17 वें शुक्रवार को उद्यापन करना होता हैं। उद्यापन के दिन सुबह उठने से लेकर शाम को पूजा पाठ के बाद भोजन करने तक नीचे दी गई दिनचर्या का पालन करें।
- सुबह जल्दी उठना :- व्रत के उद्यापन के दिन कभी भी लेट तक ना सोएँ। प्रातःकल जल्दी उठकर स्नान आदि करके साफ और सात्विक वस्त्र धारण करें।
- पूजा स्थल की सफाई :- घर की अच्छे से सफाई करके घर की किसी पवित्र और साफ स्थान पर चौकी की स्थापना करें।
- चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर माता संतोषी की प्रतिमा/फोटो की स्थापना करें।
- प्रतिमा के आगे जल का कलश रखें। कलश पर कटोरी में गुड़ और चने रखें।
- दीपक प्रज्वलन :- किसी भी पूजा में सबसे पहले दीपक जलाया जाता है और दीपक पूरी पूजा के दौरान जलता रहना चाहिए। भगवान के आगे हम दीपक जलाकर ये कामना करते हैं की हमारी पूजा बिना विघ्न के पूर्ण हो जाए। अब दीपक जलाएं और माता संतोषी और भगवान गणेश को धूप दीपक दिखाएं।
- गणपती पूजन :- किसी भी पूजा में सबसे पहले गणेश जी की पूजा की जाती हैं इसलिए पहले पूर्ण विधि विधान से गणेश जी की पूजा करें। गणेश जी को अक्षत, मौली, जनेऊ, लाल पुष्प, दूर्वा घास आदि अर्पित करें।
- गणेश पूजन के बाद माता संतोषी की पूजा अर्चना करें। उन्हे मौली, अक्षत, पुष्प, और लाल चुनरी भेंट करें।
- हाथ में गुड़ और चने लेकर संतोषी माता की व्रत कथा सुने।
- कथा पूरी होने के बाद संतोषी माता की आरती गाए।
- पूर्ण विधि विधान से पूजा और व्रत कथा सुनने के बाद प्रसाद वितरित करें। संतोषी माता का प्रसाद गुड़ और चना होता है। पूजा के बाद कलश पर रखे गुड़ चने को गाय माता को खिला दें और कलश का तुलसी के पौधे या अन्य किसी पौधे में अर्ग दे दें।
- संतोषी माता के व्रत के उद्यापन में 8 बालकों को भोजन कराया जाता है लेकिन इस बात का ध्यान रखें की जिन 8 बालकों को भोजन कर रहें हैं उन्हे इस दिन खट्टाई बिल्कुल भी ना खाने दें। उन्हे भोजन में अढ़ाई सेर आटे का खाजा, अढ़ाई सेर आटे की खीर, अढ़ाई सेर चने की सब्जी परोसें।
- दान :- व्रत के उद्यापन में हमें ब्राह्मणों या जरूरतमंदों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दान दक्षिण जरूर देना चाहिए। दान पुण्य के बिना व्रत का उद्यापन अधूरा माना जाता है।
FAQ
उद्यापन में क्या करना चाहिए?
किसी भी व्रत के उद्यापन में 3 चीजे बहुत महत्वपुर होती हैं , दान – पुण्य, यज्ञ और ब्राह्मण भोज। अगर आप किसी भी व्रत का उद्यापन कर रहें हैं तो अपने सामर्थ्य के अनुसार छोटा या बड़ा यज्ञ कराएं, ब्राह्मणों को भोजन कराए और दान पुण्य करें।
क्या हम उद्यापन के बाद खाना खा सकते हैं?
हाँ, आप उद्यापन के बाद खाना खा सकते हैं। जिस तरह बाकी व्रत की पूजा के बाद आप खाना खाते हैं उसी तरह उद्यापन के दिन भी शाम की पूजा के बाद आप भोजन कर सकते हैं।
Pinterest :- संतोषी माता images
चेतावनी – इस artical में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह जानकारी लेखक द्वारा विभिन्न माध्यमों से एकत्रित कर पाठकों तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें।