रविवार व्रत कथा और आरती pdf | ravivar vrat katha 2024

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ravivar vrat katha – रविवार का व्रत सूर्यदेव की स्तुति में किया जाता है। सूर्यदेव को सृष्टि की आत्मा कहा जाता है। कोई भी धर्म हो या देश हो सूर्य को देवताओं में शामिल करके पूजा जाता है। सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है। हिन्दू धर्म में रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित किया गया है। सूर्य देव को काय कष्ट हरने वाला देव माना जाता है । इसलिए जो व्यक्ति सचे मन से रविवार के व्रत करता है उसकी काय निरोगी रहती है। रविवार के व्रत में ravivar vrat katha सुनने के बाद ravivar ki aarti गायी जाती है।

रविवार व्रत कथा ravivar vrat katha in hindi

रविवार व्रत की कहानी एक छोटे से गाँव से शुरू होती है। प्राचीन काल में किसी गाँव में एक बूढी औरत रहती थी। वह बूढी औरत सूर्यदेव की परम भक्त थी। हर रविवार को सूर्यदेव की आराधना में वह व्रत रखती थी, पूरे विधि विधान से भगवान सूर्य की पूजा करती और ravivar vrat katha सुनती।

रविवार की प्रातःकाल को उठकर वह सबसे पहले अपनी टूटी फूटी झोंपड़ी की साफ सफाई करती उसके बाद हमेशा अपने आँगन को गोबर से लीपती, उसके बाद ही वह भगवान सूर्य की पूजा करती थी। बुढ़िया बहुत गरीब थी इसलिए उसके पास गाय नही थी बस एक टूटी फूटी झोपडी थी। बुढ़िया के पडौस की महिला के पास गाय थी। रविवार के दिन बुढ़िया पडौस के घर से ही गाय का गोबर लाकर अपना आँगन लीपती थी।

पडौसी महिला स्वभाव से बहुत ईर्षालू थी। बुढ़िया द्वारा हर रविवार को सूर्यदेव का व्रत इतनी श्रद्धापूर्वक रखने से उसे बुढ़िया से ईर्षा होने लगी। उसने बुढ़िया को रविवार का व्रत न रखने के लिए बहुत कहा, उसे भ्रमित करने के लिए सूर्यदेव के विरुद्ध तरह तरह की कहानिया सुनाई। लेकिन बुढ़िया उसी श्रद्धा से व्रत रखती रही। तब पडौसी महिला को एक तरकीब सूझी। उसे पता था जब तक बुढ़िया गाय के गोबर से अपना आँगन नही लीपेगी तक तक रविवार व्रत की कहानी नहीं सुनेगी और भगवान सूर्य की पूजा नही करेगी। इसलिए उसने अपनी गाय को घर के अन्दर बांधना शुरू कर दिया।

अगले रविवार को बुढ़िया हमेशा की तरह प्रातःकाल जल्दी उठकर गाय का गोबर लेने पड़ोस के घर गई । लेकिन गाय घर के अंदर बंधी हुई थी इसलिए बिना गोबर लिए उसे लौटना पड़ा। गोबर न मिलने से बुढ़िया बहुत दुखी हो गई और उदास मन से बैठ गई। उसने पूरे दिन कुछ नहीं खाया और रात को भी बिना भोजन किए सो गई। सूर्यदेव से अपने भक्त ही यह दुर्दशा देखी नहीं गई और उन्होंने बुढ़िया की मदद करने की सोची। सूर्यदेव ने रात को बुढ़िया के आँगन में एक सुन्दर सी गाय और बछड़ा प्रकट कर दिया। जिससे बुढ़िया गाय के दूध से अपना भरण पोषण कर सके और गोबर से अपना घर लीप सके।

अगली सुबह जब बुढ़िया उठी तो उसके आँगन में एक सुन्दर गाय अपने बछड़े के साथ बंधी थी। गाय को देखकर वह बूढ़ी औरत बहुत खुश हुई। बुढ़िया समझ गई यह चमत्कार सूर्यदेव ने ही किया है। उसने भगवान सूर्य देव का धन्यवाद किया और गाय और बछड़े की सेवा में लग गई। अब बुढ़िया बहुत खुश थी और हमेशा की तरह वह रविवार का व्रत करने लगी। अब तो बुढ़िया और भी श्रद्धा से रविवार व्रत की कहानी सुनती और अपना व्रत पूर्ण करती ।

पड़ोसी महिला ने जब बुढ़िया के पास इतनी सुन्दर, हस्ट पुस्ट गाय और बछड़ा देखा तो वह पहले से भी और अधिक ईर्षा करने लगी। वह बुढ़िया की गाय पर नजर रखने लगी। अगली सुबह उसने देखा की गाय ने सोने का गोबर किया है। आश्चर्य के मारे उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। अपने लालची स्वभाव के कारण तुरंत उसने सोने का गोबर चुरा लिया और उसकी जगह अपनी गाय का गोबर लाकर रख दिया। अब रोज सुबह बुढ़िया के उठने से पहले वह सोने का गोबर चुरा ले जाती और अपनी गाय का गोबर वहाँ रख जाती। बुढ़िया को कभी पता नहीं चला की उसकी गाय सोने का गोबर करती है।

सूर्यदेव को पड़ोसी महिला के इस कृत्य पर बहुत क्रोध आया। जिस गाय को उन्होंने अपनी भक्त के लिए पृथ्वी लोक पर भेज था उसका सुख कोई ओर भोग रहा है। बुढ़िया की मदद करने के लिए उन्होंने बहुत जोर से आंधी चलाई। आंधी के कारण बुढ़िया को अपनी गाय को घर के भीतर बांधना पड़ा। अगली सुबह बुढ़िया देखती है की उसकी गाय ने सोने का गोबर किया है। बुढ़िया बहुत ही सात्विक स्वभाव की थी इतना सोना देखकर भी उसे कोई लालच नहीं आया। इस सोने और धन दौलत को सूर्यदेव की कृपा मानकर बुढ़िया ने सूर्यदेव को प्रणाम किया और हमेशा की तरह अपने काम में लग गई।

अगली सुबह हमेशा की तरह पड़ोस की लालची औरत गाय का सोने का गोबर लेने के लिए आई। लेकिन गाय को बाहर बंधा न पाकर पड़ोसी महिला फिर जल भून गई। उसने फिर एक तरकीब सोची और अपने पति को सारी बात बताई की कैसे बुढ़िया की गाय सोने का गोबर करती है। उसने अपने पति को राजा के पास भेजा ताकि वह राजा को इस चमत्कारी गाय के बारे में बता सके। उसके पति ने राजदरबार में जाकर चमत्कारी गाय के बारे में राजा को बताया।

राजा को पहले तो विश्वास नहीं हुआ लेकिन अंततः उसे विश्वास हुआ और उसने अपने सौनिकों को बुलाकर तुरंत उस चमत्कारी गाय को राजदरबार में लाने का आदेश दिया। सैनिक तुरंत गाय को लेने बुढ़िया की झोंपड़ी में पहुंचे। बुढ़िया ने बहुत मिन्नते की की यह गाय भगवान सूर्य की भेंट है और उसके सिवा उसका इस दुनिया में कोई नहीं है। बुढ़िया ने सोने का गोबर हमेशा राजा को देने का भी वादा किया लेकिन सैनिक एक न माने और बलपूर्वक गाय और बछड़े को राजमहल ले गए।

राजा गाय को पाकर बहुत खुश हुआ और खुशी खुशी सोने से अपने खजाने को भरने लगा। सूर्यदेव को जब इस वृतांत का पता चला तो वह राजा के सपने में आए और राजा को चेतावनी दी। उन्होंने राजा को कहा की वह बुढ़िया की गाय उसे लौटा दे वरना उसके राज्य पर विपतियों का पहाड़ टूट पड़ेगा और उसकी प्रजा पर दुखों का कारण तुम्हारा लालच होगा। राजा सूर्यदेव के सपने मे दी चेतावनी से बहुत डर गया और अगली सुबह उठते ही गाय को बूढ़ी औरत को लौटाने वह स्वयं गया।

राजा ने बूढ़ी औरत से माफी मांगी और उसकी और उसकी गाय की रक्षा करने का प्रण लिया। राजा को जब पता चला की कैसे पड़ोस की महिला ने अपने लालच के लिए राजा को भी अपने पाप में शामिल किया तो उसने उसे कारागार में डाल दिया। उसके बाद राजा भी सूर्यदेव की महिमा को मानने लगा। राजा उसके बाद से हमेशा रविवार का व्रत रखने लगा और रविवार व्रत की कहानी सुनने के बाद सूर्यदेव की पूजा अर्चना करता ।

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ravivar vrat katha in hindi pdf

ravivar vrat vidhi

रविवार व्रत सम्पूर्ण विधि से करने से सूर्य देव सारे काय कष्ट और रोग हर लेते हैं। इसलिए रविवार का व्रत पूर्ण विधि विधान से करना बहुत जरूरी है। तो आइए जानते हैं रविवार का व्रत करने की ravivar vrat vidhi –

रविवार के दिन सूर्यदेव की पूजा करने की सम्पूर्ण विधि।

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ravivar vrat vidhi
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ravivar ki aarti

रविवार के व्रत में ऊपर बताई गई विधि के अनुसार सूर्यदेव की पूजा करें एवं नीचे दी गई उनकी ravivar ki aarti गाएं ।

कहुँ लगि आरती दास करेंगे,
सकल जगत जाकि जोति विराजे॥

सात समुद्र जाके चरण बसे,
कहा भयो जल कुम्भ भरे हो राम॥

कोटि भानु जाके नख की शोभा,
कहा भयो मन्दिर दीप धरे हो राम॥

भार उठारह रोमावलि जाके,
कहा भयो शिर पुष्प धरे हो राम॥

छप्पन भोग जाके नितप्रति लागे,
कहा भयो नैवेघ धरे हो राम॥

अमित कोटि जाके बाजा बाजे,
कहा भयो झनकार करे हो राम॥

चार वेद जाके मुख की शोभा,
कहा भयो ब्रहम वेद पढ़े हो राम॥

शिव सनकादिक आदि ब्रहमादिक,
नारद मुनि जाको ध्यान धरें हो राम॥

हिम मंदार जाको पवन झकेरिं,
कहा भयो शिर चँवर ढुरे हो राम॥

लख चौरासी बन्दे छुड़ाये,
केवल हरियश नामदेव गाये॥

ravivar ki aarti image

ravivar vrat ki aarti images
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रविवार सूर्य भगवान की आरती PDF

रविवार व्रत की आरती की pdf file download करने के लिए नीचे click करें।

FAQs

रविवार का व्रत कब से शुरू करना चाहिए ?

रविवार का व्रत सूर्यदेव को समर्पित होता है। हम किसी भी माह के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से इस व्रत को शुरू कर सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष का अंतिम रविवार महारविवार माना जाता है। इस दिन सूर्यदेव का जन्म हुआ था। इसलिए महारविवार को व्रत आरंभ करना भी बहुत शुभ माना जाता है।

रविवार के कितने व्रत करने चाहिए ?

रविवार का व्रत सूर्यदेव को समर्पित माना जाता है। सूर्य देव ही सम्पूर्ण संसार में ऊर्जा के संचालक माने जाते हैं। मान्यता है की रविवार का व्रत कम से कम 12 रविवार करना चाहिए। 30 रविवार का व्रत भी शुभ माना जाता है। पूरे 1 वर्ष तक व्रत रखने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इसके अलावा आप और भी अधिक अवधि तक व्रत रखना चाहते है तो 5 साल या 12 साल तक इस व्रत को कर सकते हैं।

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