budhwar vrat katha in hindi 2024 | गणेश जी की व्रत कथा बुधवार pdf

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budhwar vrat katha in hindi: हिन्दू पंचाग में बुधवार के दिन गणेश जी को समर्पित माना गया हैं। मान्यता है की जब भगवान गणेश पैदा हुए थे तो माता पार्वती और भगवान शिव के अलावा वहाँ केवल भगवान बुध उपस्थित थे। इसलिए बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित किया गया। गणेश जी की भक्ति में बुधवार का व्रत रखते हैं और गणेश जी पूजा के बाद budhwar vrat katha या जिसे गणेश जी की व्रत कथा भी कहा जाता है सुनते हैं।

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budhwar vrat katha in hindi बुधवार व्रत कथा

budhwar vrat katha
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Budhwar Ki Kahani :- प्राचीन काल में समतापूर नाम का एक नगर था। उस नगर में मधुसूदन नाम का एक व्यक्ति निवास करता था। मधुसूदन जब विवाह योग्य हुआ तो उसके माता पिता ने उसका विवाह पास ही के छोटे से नगर बलरामपुर की एक सुन्दर और सुशील युवती, संगीता से कर दिया। संगीता का परिवार काफी धार्मिक और सात्विक भाव से जीवन जीता था। इसलिए संगीता और मधुसूदन का विवाह पूर्ण रीति रिवाज और रस्मों से संपन हुआ। विवाह उपरांत संगीता और मधुसूदन सुखपूर्वक दाम्पत्य जीवन जीने लगे।

विवाह होने के बाद कभी अपने ससुराल कभी पीहर इस तरह संगीता का जीवन सुख पूर्वक व्यतीत होने लगा। एक बार संगीता अपने पीहर बलरामपुर गई हुई थी। कुछ समय बाद मधुसूदन उसे लेने अपने ससुराल पहुंचा । ससुराल में मधुसूदन की खूब आवभगत हुई और आदर सम्मान मिला। संध्या को जब मधुसूदन ने ससुराल से विदाई लेनी चाही तो संगीता के माता पिता ने उन्हे विदाई देने से मना कर दिया।

संगीता के माता पिता बोले ” दामाद जी आज बुधवार का दिन है। हमारे यह रिवाज है की बुधवार के दिन लड़की को अपने ससुराल के लिए विदा नहीं करते हैं। बुधवार को ससुराल जाना बहुत अशुभ माना जाता है। आप आज रात्री को यही विश्राम करो और प्रातःकाल संगीता को साथ लेकर चले जाना। “

मधुसूदन को उनकी यह बातें कोरा अंधविश्वास लगा। इसलिए मधुसूदन को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ और वह बुधवार को ही जाने की अपनी जिद पर अडिग रहा। हारकर संगीता के माता पिता ने उन्हे विदा कर दिया। मधुसूदन और संगीता अभी कुछ दूर ही निकले थे की घने वन में उनकी बैलगाड़ी का पहिया निकल गया। अब बैल बैलगाड़ी को नहीं खींच पाया और दोनों पैदल ही समतापूर की तरफ निकल पड़े।

कुछ दूरी चलने के उपरांत संगीता को थकान होने लगी और बहुत तीव्र प्यास लग गई। दोनों ने एक पेड़ के नीचे विश्राम करने का निश्चय किया और मधुसूदन संगीता के लिए जल लाने वन में निकल गया। थोड़ी देर बाद जब मधुसूदन जल लेकर आया तो उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। वह देखता है की उसकी पत्नी के पास उसका हमशक्ल व्यक्ति ठीक उसी के जैसी वेशभूषा धारण किए बैठा है।

मधुसूदन को ये देख बहुत क्रोध आया और वह उस बहरूपिये से झगड़ा करने लगा। संगीता भी नहीं समझ पाई की उसका पति कौन है क्यूंकी दोनों पूर्णतः एक जैसे प्रतीत हो रहे थे। मधुसूदन और उसके हमशक्ल का झगड़ा सुनकर पास ही से गुजर रहे राजा के सैनिक वहाँ आ गए। सैनिकों ने जब सारा वृतांत सुना तो उन्होंने संगीता से अपने पति को पहचानने को कहा । संगीता भी दुविधा में पड़ गई और अपने पति को नहीं पहचान पाई।

झगड़े का कोई हल नहीं निकलने के कारण सैनिकों से मधुसूदन और उसके हमशक्ल को राजदरबार में पेश किया। राजा भी पहचान नहीं पाया की दोनों में कौन बहरूपिया है और कौन संगीता का पति है। इसलिए राजा ने दोनों को ही कठोर कारावास की सजा सुना दी। अब मधुसूदन को अपने किए का प्रायश्चित होने लगा और वो समझ गया की उसने बुद्धदेव को क्रोधित किया है और ये उन्ही के क्रोध का फल है।

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मधुसूदन ने हाथ जोड़कर भगवान बुध से क्षमा मांगी। मधुसूदन ने प्रण लिया की वो आज के बाद हमेशा बुधवार का व्रत रखेगा और budhwar vrat katha सुनेगा। भगवान ने उसे उसके पाप का दंड ने दिया था और उसे शिक्षा भी मिल गई थी इसलिए भगवान ने उसको क्षमा कर दिया। मधुसूदन के पापमुक्त होते ही चमत्कार हुआ और उसका बहरूपिया तुरंत अदृश्य हो गया। राजा ने उसे क्षमा करके प्राण दान दिया और संगीता के साथ विदा कर दिया।

दोनों राजा के महल से थोड़ी ही दूर निकले होंगे की उन्हे सामने से अपनी बैलगाड़ी आती दिखाई दी। बैलगाड़ी मे दोनों पहिये भी एकदम ठीक थे। मधुसूदन और संगीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दोनों ने भगवान को धन्यवाद दिया और तुरंत अपनी बैलगाड़ी में सवार होकर घर की तरफ प्रस्थान किया।

उसके बाद से मधुसूदन कभी भी बुधवार को संगीता को नहीं लाया और दोनों सुखपूर्वक अपना दाम्पत्य जीवन यापन करने लगे। बुधवार का व्रत निरंतर करने के कारण भगवान बुध और गणेश जी की कृपा हमेशा उन पर बनी रही।

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बुधवार व्रत कथा का महत्व

ऊपर हमने बुधवार के व्रत की कहानी पढ़ी। उसे पढ़कर हमें यह शिक्षा मिलती है की हमें अपनी प्राचीन रीति रिवाज और परंपराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए। अंधविश्वास और सच्चे मन की श्रद्धा में एक बारीक सी रेखा होती है। हमें उस रेखा को पहचानना सीखना होगा। सची श्रद्धा को कभी भी अंधविश्वास नहीं कहना चाहिए। साथ ही यह कथा हमें भगवान बुध के रौद्र रूप से भी अवगत करती है। अगर हम नीति संगत और धर्म के रास्ते पर नहीं चलेंगे तो हमने अपने देवताओ का रौद्र रूप अवश्य देखने को मिलेगा।

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