saphala ekadashi kab hai : भगवान विष्णु के रूप भगवान नारायण की स्तुति में सफला एकादशी का व्रत रखा जाता है। । पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है। ब्रम्हवैवर्त और पद्म पुराण के अनुसार अपने नाम के अनुरूप ही इस एकादशी का व्रत करने से जातक को मनोवांछित और कल्याणकारी फल की प्राप्ति होती है। भगवत गीता में सफला एकादशी की महिमा का गुणगान करते हुवे श्रीकृष्ण ने कहा है की सफला एकादशी का व्रत पूर्ण श्रद्धा और भक्ति भाव से करने से ना केवल सार्थक फल की प्राप्ति होती हैं बल्कि मृत्युप्रान्त भी भगवान नारायण के चरणों के जगह मिलती है।
सफला एकादशी 2024 का व्रत कब है saphala ekadashi kab hai
सफला एकादशी 2024 का व्रत 07 जनवरी 2024 और 26 दिसम्बर 2024 के दिन रखा जाएगा। सफला एकादशी पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी है। एकादशी तिथि के आरंभ और समाप्ति का समय नीचे दिया गया है।
जनवरी माह की सफला एकादशी
दिनांक | 07 जनवरी 2024,रविवार |
तिथि प्रारंभ | 07 जनवरी 2024 को रात 12:41 (AM) बजे |
तिथि समाप्त | 08 जनवरी 2024 को रात 12:46 (AM) बजे |
दिसम्बर माह की सफला एकादशी
दिनांक | 26 दिसम्बर 2024, गुरुवार |
तिथि प्रारंभ | 25 दिसम्बर 2024 शाम 10:29(PM) बजे |
तिथि समाप्त | 27 दिसम्बर 2024 सुबह 12:43(AM) बजे |
saphala ekadashi 2024 parana time सफला एकादशी 2024 पारण का समय
व्रत के पारण से तात्पर्य है विधि पूर्वक व्रत खोलना। व्रत खोलते समय व्रत के पारण के मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना चाहिए। पारण मुहूर्त में व्रत खोलने से व्रत का सम्पूर्ण फल जातक को प्राप्त होता है। एकादशी व्रत का पारण हमेशा द्वादशी में किया जाता है। इसी तरह सफला एकादशी 2024 का पारण द्वादशी की तिथि यानि 8 जनवरी 2024 को किया जाएगा। द्वादशी को सुबह 07:15 बजे से सुबह 09:20 बजे तक कभी भी आप अपने व्रत का पारण कर सकते हैं।
जनवरी माह की सफला एकादशी
पारण की तिथि | 8 जनवरी 2024 |
पारण का समय | 07:15 AM to 09:20 AM |
दिसम्बर माह की सफला एकादशी
पारण की तिथि | 27 दिसम्बर 2024 |
पारण का समय | 07:12 AM to 09:16 AM ( सुबह ) |
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सफला एकादशी व्रत कथा कहानी saphala ekadashi vrat katha
सफला एकादशी व्रत कथा :- प्राचीन काल की बात है, चंपावती नाम का एक छोटा सा नगर था। वहाँ के शासक का नाम महिष्मान था। महिष्मान के चार पुत्र थे। बड़े पुत्र को छोड़कर बाकी सभी पुत्र प्रतापी और कर्मठ थे। वो राजा की राज काज संभालने में मदद करते और राज्य के शासन में हाथ बँटाते थे। बड़ा पुत्र लुम्पक अपने भाइयों की विपरीत प्रवर्ति का था। वह हमेशा मदपान, जुआ आदि कुकृत्यों में लिप्त रहता था।
वह नित्य अधर्म के कार्य करके राजमहल आता और अपने अन्य भाइयों को भी सताता था। वेश्यावृति, चोरी आदि अधर्म के कार्यों ने उसे अपने क्रम के प्रति अंधा कर दिया था। जब राजा को इस बात का पता चला तो राजा महिष्मान बहुत व्यथित हुवे। उन्होंने लुम्पक को बहुत समझाया और नीति का पाठ पढ़ाया लेकिन लुम्पक नहीं सुधरा। अंततः राजा ने लुम्पक को राजमहल से निकाल दिया।
राजमहल से निकाले जाने के बाद लुम्पक बहुत ही असहाय और लाचार हो गया। अपने पिता की धन दौलत से दूर होने के बाद उसे संसार का असली रूप समझ आने लगा था। लेकिन वह अपने बाकी भाइयों की तरह मेहनती नहीं था इसलिए उसने फिर से अधर्म का मार्ग अपनाया और चोरी करके अपना गुजारा करने लगा। लुम्पक अपने राजा की ही नगरी में चोरी करता और मार पीट भी करने लगा।
सिपाहियों या प्रजा द्वारा पकड़े जाने पर अपने राजा पिता का नाम लेकर छूट जाता। पूरी प्रजा लुम्पक से परेशान हो गई। लेकिन सबको राजा का डर लगता था इसलिए कोई लुम्पक से कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर पता था। लुम्पक ने पास के ही वन में रहना शुरू कर दिया। खाने पीने की चीजों की कमी आने पर उसने जंगल के जानवरों को ही मारकर खाना प्रारंभ कर दिया। इस तरह लुम्पक ने एक राक्षस की सारी प्रवृतियों को अपना लिया था।
उसी वन में एक बहुत पुराना पीपल का वृक्ष था। चंपावती के निवासियों की ऐसी मान्यता थी इस उस पेड़ पर साक्षात भगवान नारायण का वास है। इसलिए उस पेड़ की देवता मानकर पूजा की जाती थी। संयोग से लुम्पक उसी पेड़ के नीचे रहने लगा। शिकार और चोरी आदि अधर्म के कार्य करके रात को वह उस पेड़ के नीचे आकर सो जाता।
एक बार पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को लुम्पक को खाने पीने के लिए कुछ ना मिला। यहाँ तक की पहनने ओढ़ने के वस्त्र भी उसे ना मिल सके। इसी कारण वह बिना खाए पिए ही उस पेड़ के नीचे सो गया। लेकिन खाली पेट और बिना वस्त्रों के सर्दी के कारण उसे पूरी रात नींद नहीं आई। वह इतना कमजोर हो गया की रात की सर्दी सह नहीं पाया और मूर्छित हो गया।
अगले दिन एकादशी की धूप से गर्मी पाकर उसकी बेहोशी टूटी और वह इधर उधर खाने की तलाश में भटकने लगा। लेकिन उसका शरीर इतना कमजोर हो चुका था की वह ना पेड़ों पर चढ़कर फल तोड़ सकता था और ना किसी जानवर का शिकार कर सकता था। किस्मत से उसे किसी पेड़ के नीचे 2, 3 फल गिरे हुवे मिल गए। वह उन फलों को उठाकर उसी चमत्कारी पीपल के पेड़ के नीचे आ गया और बोला ” इस फलों से मेरा तो पेट भरेगा नहीं, तुम ही खाओ इन फलों को, ये फल मैं तुम्हें अर्पित करता हूँ।” इतना कहकर वह भूखे पेट ही सो गया।
जाने अनजाने में लुम्पक ने पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का उपवास रख लिया था और रात्री जागरण भी लगा लिया था। लुम्पक के इस उपवास और जागरण से भगवान नारायण बहुत प्रसन्न हुवे और उसके सारे पापों का क्षमादान दे दिया। अगली सुबह जब लुम्पक उठा तो उसके सामने एक सुंदर का घोड़ा खड़ा था जो उसे राजमहल वापस लेने आया था। उसके पिता राजा महिष्मान ने भी उसे माफ कर दिया था।
उसी समय आकाशवाणी हुवी ” हे अधर्मी लुम्पक ! आज तेरे सारे पाप भगवान नारायण से क्षमा कर दिए है। पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के तेज से आज से तेरा भाग्य बदल गया है। चंपावती का राज कार्य संभाल और धर्म के रास्ते पर आगे बढ़। ” आज के बाद लोग पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जानेंगे और भगवान नारायण की स्तुति में व्रत और जागरण रखेंगे।”
लुम्पक खुशी खुशी अपने महल आ गया और राजा ने भी सहर्ष उसे माफ कर दिया। कुछ दिनों तक लुम्पक का यह बदला हुआ आचरण देखकर राजा ने लुम्पक को चंपावती का राजा बना दिया और स्वयं तपस्या करने वन में चले गए।
हे भगवान नारायण जिस तरह आपने लुम्पक द्वारा व्रत और जागरण करने पर उसके सारे पाप माफ कर दिए उसी तरह ये सफला एकादशी व्रत कथा सुनने वाले सभी भक्तों को अपना आशीर्वाद प्रदान करें। जानें अनजाने में हमसे अगर कोई अधर्म और पाप हो गया है तो हमें क्षमा करें।
निष्कर्ष/ सारांश
प्रिय पाठकों इस लेख में हमने जाना की saphala ekadashi kab hai और तिथि आरंभ और तिथि समाप्ति के समय के बारे में पढ़ा । व्रत कथा किसी भी व्रत का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है। इस लेख में हमने सफला एकादशी व्रत कथा भी पढ़ी। अगर आपके इस लेख से संबंधित कोई सुझाव या शिकायत है तो comment करके जरूर बताएं।
Pinterest :- सफला एकादशी की शुभकामनाएं ।
FAQ
सफला एकादशी का क्या महत्व है?
हिन्दू धर्म के प्राचीन ग्रंथ पुरानो जैसे ब्रम्हवैवर्त और पद्म पुराण में सफला एकादशी का महत्व बताया गया है। सफला एकादशी अपने नाम के अनुसार ही भक्त को मनचाहे फल को प्रदान करती है। माना जाता है की भगवान कृष्ण ने भगवत गीता में एकादशी के व्रत को उन्ही के समान शक्तिशाली और तेजयुक्त बताया है। सफला एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और भक्त के सकारात्मक कार्यों का फल प्रदान करते हैं। मान्यता है की मृत्यु के पश्चात तक सफला एकादशी का फल बना रहता है और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
सफलता के लिए कौन सी एकादशी है?
वैसे तो सारी एकादशी व्रत ही भक्त के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और ऐश्वर्य लाती हैं लेकिन सफला एकादशी को विशेष माना गया है। माना जाता है की अगर कठिन परिश्रम करते हैं फिर भी सफलता रूपी फल की प्राप्ति नहीं होती तो आपको सफला एकादशी का उपवास अवश्य रखना चाहिए। सफला एकादशी का व्रत रखने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भक्त को अपने समस्त कार्यों में सफलता की प्राप्ति होती है।
सफला एकादशी क्यों मनाई जाती है?
पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का सफला एकादशी यानि फल प्रदान करने वाली एकादशी माना जाता है। सफला एकादशी इसलिए मनाई जाती है क्यूंकी ऐसा माना जाता है इस एकादशी को व्रत रखने से भगवान नारायण प्रसन्न होते हैं और भक्त के कठिन प्रयासों का फल प्रदान करते हैं। भगवान नारायण ने पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को लुम्पक जैसे अधर्मी के भी सारे अधर्म माफ करके उसके उपवास और रात्री जागरण का पहला प्रदान किया था। उसके बाद से उस एकादशी को सफला यानि फल देने वाली एकादशी माना जाता है।
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