बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु को पूजा जाता है। मान्यता है की इस दिन व्रत रखने से भगवान विष्णु हर मनोकामना पूर्ण करते हैं । फिर चाहे वो धन संपदा हो या संतान प्राप्ति , सच्चे मन से पूर्ण विधि विधान से बृहस्पतिवार का व्रत रखने से भगवान विष्णु के चरणों में जगह मिलती है । तो आइए सुनते हैं Brihaspativar vrat katha.
Brihaspativar vrat katha
Guruvar ki katha :- प्राचीन काल की बात है किसी नगर पर एक बड़े ही प्रतापी और दानवीर महाराजा का शासन था । राजा की मान्यता थी की इंसान जितना अधिक दान पुण्य करता है उतना ही देवों के निकट जाता है और परम ज्ञान की प्राप्ति होती है। इसलिए राजा हर गुरुवार को भगवान बृहस्पति का व्रत रखता था और brihaspativar vrat katha सुनता। उस दिन वह दरबार लगता और नगर के समस्त दिन दुखियों की सहायता करता। उस दिन दरबार में जो भी आता वह खाली हाथ नहीं जाता , राजा दिल खोलकर दान पुण्य करता ।
रानी को यह बात बिल्कुल पसंद नहीं थी । वह दान पुण्य , व्रत विधि आदि में विश्वास नहीं करती थी । उसने इस बात के लिए राजा को बहुत बार टोका लेकिन राजा पर इसका कोई असर नहीं हुआ । एक बार राजा किसी कार्य से नगर से बाहर गये हुवे थे तो भगवान बृहस्पति एक भिक्षुक का रूप धारण करके रानी के महल मे आए और रानी से भिक्षा मांगी । रानी को भिक्षुक द्वारा भिक्षा मांगना गवारा ना हुआ ।
रानी बोली ” हे भिक्षुक ! मेरे एक कष्ट का निवारण करो तभी तुम्हें भिक्षा मिलेगी । मैं इस रोज रोज के दान पुण्य , भिक्षा , गरीबों को खाना खिलाना, उनको कपड़े देना इनसे तंग आ गई हूँ । ऐसा धन भी किस काम का जो संभले ही ना और जिसे दान देना पड़े । “
भिक्षुक रूप मे देव बृहस्पति को बड़ा आश्चर्य हुआ वो बोले ” हे देवी ! लोग तो भगवान से धन दौलत ,राज काज ,ऐशो आराम मांगते हैं । आपको बिना मांगे सब मिल तो आप परेशान हो रही हैं । “
रानी बोली ” हे साधु ! मुझे ऐसा धन नहीं चाहिए जिसे संभालने के लिए मुझे समय व्यर्थ करके दान करना पड़े । मुझे कोई ऐसा समाधान बताओ जिससे ये सारी धन संपदा नष्ट हो जाए और राजाजी को दान पुण्य मे समय व्यर्थ ना करना पड़े । “
साधु बोल जैसी तुम्हारी इच्छा देवी । आपको एक उपाय बताता उसे हर बृहस्पतिवार करना तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा । बृहस्पतिवार को स्नान करो तो अपनों केशों को जरूर धोना । सम्पूर्ण घर को गोबर का लेपन करना । खाने पीने मे मांस -मदीरा का सेवन करना । राजाजी को बृहस्पतिवार के दिन केश कटवाने को कहना । अपने केशों को पीली मिट्टी से लीपना । ऐसा करोगी तो तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा और तुम्हें कभी दान पुण्य नहीं करना पड़ेगा ।
रानी से वैसा ही किया और धीरे धीरे राजा रानी के कर्मों के प्रभाव से अपने पतन की तरफ जाने लगा । राजा की सारी धन संपदा नष्ट हो गई । राज काज चोपट हो गया , महल छूट गया और राजा रानी झोपड़ी में रहने को मजबूर हो गये । घर में खाने के लिए अनाज के भी लाले पड़ गये । गरीबी से तंग आकर राजा पास के राज्य में कमाने के लिए निकल गया । अब केवल रानी और उसकी दाशी घर मे अकेली रह गई।
रानी ने दाशी से कहा ” पास के राज्य में मेरी बहन रहती है । उसके पास धन की कोई कमी नहीं है। उसका पति बहुत बड़ा व्यापारी है। तुम उसके पास मेरा संदेश लेकर जाओ और मेरी व्यथा सुनाओ वो हमारी अवश्य मदद करेगी। ”
दाशी रानी का संदेश लेकर उनके बहन के घर चली गई । वहाँ जाकर उसने रानी की बहन को रानी की सी व्यथा सुनाई और मदद मांगी । रानी की बहन से दाशी की सारी बात सुनी लेकर कोई प्रतिउतर नहीं दिया । दाशी ने काफी इंतज़ार किया लेकिन रानी की बहन अपने कार्यों में लगी रही । अंततः दुखी और हताश होकर दाशी वापस आगई और सारी बात रानी को बताई । रानी भी अपने बहन के इस व्यवहार से काफी दुखी और हताश हो गई ।
कुछ दिनों बाद रानी की बहन रानी से मिलने आई और अपने व्यवहार के लिए रानी से माफी मांगी । रानी की बहन बोली ” बहन ! जब तुम्हारी दाशी संदेश लेकर आई थी तब मैं guruvar ki katha सुन रही थी । व्रत के सारे विधि नियम पूरे किए बिना ना मैं कोई दूसरा कार्य करती हूँ और ना बात करती हूँ । इसलिए मैं तुम्हारे संदेश का उतर नहीं दे पाई ।
रानी से अपनी बहन को अपनी सम्पूर्ण दुख भरी कथा सुनाई की कैसे अपने ही हाथों से उसने अपना सारा सुख नष्ट कर लिया । रानी की बहन बोली बहन तुम्हें गुरु बृहस्पति को रुष्ट किया है । भगवान बृहस्पति को वापस मनाने के लिए तुम्हें उनका बृहस्पतिवार का व्रत रखना होगा और brihaspati vrat katha सुननी होगी । सच्चे मन से guruvar ki katha सुनने से ही तुम्हारे सारे कष्ट दूर होंगे । रानी की बहन ने रानी को सम्पूर्ण बृहस्पतिवार व्रत विधि बताई और चली गई ।
रानी ने अपनी बहिन के बताए अनुसार सम्पूर्ण नियम विधि से बृहस्पतिवार व्रत रखा और brihaspativar vrat katha सुनी । समय बीतता गया और रानी बृहस्पतिवार का व्रत रखती गई । भगवान रानी की निष्ठा और भक्ति से बहुत प्रसन्न हुए । धीरे धीरे रानी के कष्ट दूर होते गये और उसकी धन संपदा लौटने लगी । राजा को भी जब इस खुशखबरी का पता चल तो वह वापस अपने राज्य लौट आया । इस तरह बृहस्पतिवार का व्रत करने से रानी के सारे दुख दूर हो गये।
Brihaspativar vrat katha pdf
brihaspativar vrat puja vidhi- गुरुवार व्रत की विधि
brihaspativar vrat puja vidhi -गुरुवार व्रत की विधि अन्य व्रतों की तुलना में थोड़ी भिन्न होती है । बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु को पूजा जाता है । माना जाता है की विष्णु भगवान की आराधना करते हुए बृहस्पतिवार का व्रत करने से मनोवांछित इच्छा पूर्ण होती है और जीवन में सुख समृद्धि आती है।
- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठे और सबसे पहले भगवान विष्णु को याद करके प्रणाम करके व्रत का संकल्प लें ।
- शुद्ध निर्मल जल से स्नान करें एवं स्नान करके पीले कपड़े पहने । विष्णु भगवान की स्तुति में पीले वस्त्र धारण किए जाते हैं ।
- बृहस्पतिवार के व्रत में केले को पूजा जाता है । केले के पेड़ के नीचे विष्णु भगवान की मूर्ति या फोटो स्थापित करें । अगर घर में केले का पेड़ नहीं है तो अपने पूजाघर में मूर्ति लगाए ।
- भगवान को नया पीला वस्त्र अर्पित करें एवं अगर पीले पुष्प उपलब्ध हैं तो भगवान के चरणों में अर्पित करें ।
- भगवान को चने की दाल एवं गुड़ का भोग लगाए ।
- इसके बाद भगवान के चरणों में शुद्ध घी का दीपक जलाए एवं धूप अगरबती आदि लगाकर विधिवत पूजन प्रारंभ करें । नीचे दी गई भगवान विष्णु की आरती एव मंत्र पढे ।
- Brihaspativar vrat katha पढ़ें ।
- जब विधिवत पूजा पाठ आरती पूर्ण हो जाए तो केले के पेड़ को जल चडाए ।
भगवान विष्णु की आरती – बृहस्पतिवार की आरती
जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा ।
छिन छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी ।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता ।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े ।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी ।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो ।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहित गावे ।
जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे ॥
ऊँ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा ॥
Brihaspativar vrat katha का सारांश –
brihaspati vrat katha हमें हमेशा सात्विक जीवन जीने और दान पुण्य करने की और अग्रसर करती है। संसार में हर मनुष्य को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान पुण्य करना चाहिए जिससे हमारे लोक परलोक दोनों सुधरें और हमे प्रभु के चरणों मे स्थान मिले। रानी को असात्विक कार्य करने की सजा मिली और उसका सारा ऐश्वर्य प्रभु विष्णु से मिट्टी में मिला दिया । प्रभु का रौद्र रूप के साथ सौम्य रूप भी हमें brihaspati katha में दिखाई देता है। रानी को क्षमा करके वापस धन सामर्थ्य देना हमें प्रभु विष्णु के सौम्य रूप को दिखाता है ।
subh guruwar images in hindi
गुरुवार को भगवान विष्णु की आराधना में भक्त व्रत रखते हैं और अपने प्रिय जनों को गुरुवार की शुभकामनाएं भेजनते हैं । अगर आप भी गुरुवार के शुभकामना संदेश भेजना चाहते हैं तो हमारे pinterest पेज से download कर सकते हैं।
यह भी पढ़ें – बृहस्पतिवार व्रत में कौनसे कार्य करने चाहिए और कौनसे न करें ?
चेतावनी – इस artical में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। यह जानकारी लेखक द्वारा विभिन्न माध्यमों से एकत्रित कर पाठकों तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।